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शेर
हम को भी क्या क्या मज़े की दास्तानें याद थीं
लेकिन अब तमहीद-ए-ज़िक्र-ए-दर्द-ओ-मातम हो गईं
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
शेर
या ख़ुदा दर्द-ए-मोहब्बत में असर है कि नहीं
जिस पे मरता हूँ उसे मेरी ख़बर है कि नहीं
जलील मानिकपूरी
शेर
हमें तो बाग़ तुझ बिन ख़ाना-ए-मातम नज़र आया
इधर गुल फाड़ते थे जैब रोती थी उधर शबनम
ख़्वाजा मीर दर्द
शेर
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
दी सज़ा इश्क़ ने हर जुर्म-ओ-ख़ता से पहले
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी